‘मलबे का मालिक’ मोहन राकेश की एक प्रसिद्ध एवं अति चर्चित कहानी है | यह कहानी भारत-पाक विभाजन के परिणामस्वरूप उत्पन्न वैमनस्य का चित्रण करती है | ‘मलबे का मालिक’ कहानी की तात्विक समीक्षा कतिपय विद्वानों द्वारा निर्धारित छह तत्त्वों के आधार पर की जा सकती है | ये छह तत्त्व निम्नलिखित हैं —
(1) कथानक या कथावस्तु
(2) पात्र एवं चरित्र-चित्रण
(3) संवाद या कथोपकथन
(4) देशकाल और वातावरण
(5) भाषा एवं भाषा-शैली
(6) उद्देश्य
यहाँ हम इन्हीं छह तत्वों के आधार पर मोहन राकेश द्वारा रचित ‘मलबे का मालिक’ कहानी की तात्विक समीक्षा ( Malbe Ka Malik Kahani Ki Tatvik Samiksha ) करेंगे —
(1) कथानक या कथावस्तु
कथानक या कथावस्तु ही किसी कहानी का आधार-स्तंभ होता है | कहानी का संपूर्ण ढाँचा उसी कथानक पर खड़ा होता है | कथानक में मौलिकता, रोचकता, प्रवाहमयता, जिज्ञासा, विश्वासनीयता आदि गुण अपेक्षित हैं |
‘मलबे का मालिक’ कहानी का कथानक ( ‘Malbe Ka Malik’ Kahani Ka Kathanak ) भारत-विभाजन और साम्प्रदायिकता के कारण हुई विनाशलीला पर आधारित है | कहानी में वृद्ध मुसलमान गनी मियां की आत्मापीड़ा की अभिव्यक्ति हुई है | जब भारत स्वतंत्र हुआ तब अब्दुलगनी का परिवार अमृतसर के बांसा बाजार में रहता था | वह देश के विभाजन से कुछ माह पूर्व लाहौर चला गया था | परंतु उसका बेटा चिरागदीन, पुत्रवधू जुबैदा तथा दोनों लड़कियाँ किश्वर और सुल्ताना उसके कहने के बावजूद भी नहीं गए | उन्हें अपने नए मकान का मोह था जो उन्होंने बड़े चाव से बनाया था | दूसरा, उन्हें रक्खा पहलवान का भरोसा था जिसके उनके परिवार के साथ बड़े मधुर संबंध थे | किंतु विभाजन के साथ ही एक ऐसी विषैली हवा चली कि मानव-मानव का दुश्मन बन गया | रक्खे पहलवान ने मकान के लालच में चिराग, उसकी पत्नी और बेटियों की हत्या कर दी | लोगों ने घर के सामान को लूट लिया | फिर किसी ने उसमें आग लगा दी | अब केवल वहाँ मकान का मलबा ही शेष रह गया | रक्खा पहलवान उस मलबे का मालिक बन बैठा | साढ़े सात वर्ष बाद हॉकी का मैच देखने के लिए लाहौर से अनेक मुसलमान अमृतसर आए थे | उनमें चिरागदीन का पिता अब्दुल गनी भी आया था | हॉकी मैच के बहाने वह अपने घर को देखने आया था | मनोरी नाम का एक युवक गनी मियां को पहचान लेता है और उसे मलबे में बदल चुके उसके मकान को दिखाता है | मोहल्ले का कोई आदमी उसे नहीं बताता कि उसके बेटे और उसके परिवार को मकान हड़पने के लिए रक्खे पहलवान ने मार दिया था | वह अपने पुत्र और परिवार के कातिल को अपना मित्र समझकर दुआएँ देकर वापस चला जाता है |
कथानक संक्षिप्त है जिसे क्रमबद्ध घटनाक्रम से उचित विस्तार प्रदान किया गया है | कथानक में मौलिकता, रोचकता, विश्वसनीयता, प्रवाहमयता, उत्सुकता आदि गुण मिलते हैं | कहानी का आरंभ, मध्य और अंत प्रभावशाली है | कहानी का अंत नई कहानी के अनुरूप है जो पाठक के समक्ष अनेक प्रश्नों को छोड़ जाता है | अत: कथानक की दृष्टि से ‘मलबे का मालिक’ एक सफल कहानी कही जा सकती है |
(2) पात्र एवं चरित्र-चित्रण
पात्र कहानी का दूसरा प्रमुख तत्व होता है | मलबे का मालिक कहानी में पात्रों की संख्या कम है | कहानी में अब्दुलगनी, रक्खा पहलवान मुख्य पात्र हैं | मनोरी और लच्छा गौण पात्र हैं | सभी पात्रों विशेषत: गनी मियां और रक्खा पहलवान की मनोदशा को अति सूक्ष्मता से अभिव्यंजित किया गया है | कहानीकार ने रक्खा पहलवान के माध्यम से साम्प्रदायिकता के जहर को तथा अब्दुलगनी के माध्यम से मानवीय उदारता को प्रकट किया है | अब्दुलगनी का पूरा परिवार समाप्त हो गया है | उसका रोम-रोम अपने परिवार के लिए रो रहा है | लेकिन कहानी के अंत में फिर भी वह दूसरों के लिए अल्लाह से दुआ मांगता है – “अल्लाह तुम लोगों को सेहतमंद रखे! जीते रहो और खुशियां देखो |”
मनोरी और लच्छा भी कहानी को आगे बढ़ाते हैं | कुत्ता और कौआ प्रतीकात्मक पात्र हैं |
(3) संवाद या कथोपकथन
संवाद कहानी का अति आवश्यक तत्व है | कहानी के संवादों के माध्यम से ही चरित्रों का उद्घाटन होता है | संवाद कहानी को स्वाभाविक, रोचक और नाटकीय बनाते हैं |
‘मलबे का मालिक’ कहानी में संवाद ( ‘Malbe Ka Malik’ Kahani Mein Samvad ) कम हैं लेकिन जो संवाद कहानी में हैं, वे बड़े ही मार्मिक, संक्षिप्त एवं प्रभावशाली हैं |
एक उदाहरण देखिए —“तू बता रक्खे, यह सब हुआ किस तरह?” गनी आँसू रोकता हुआ आग्रह के साथ बोला, “तुम लोग उसके पास थे, सब में भाई-भाई की-सी मुहब्बत थी, अगर वह चाहता तो वह तुम में से किसी के घर में नहीं छिप सकता था? उसे इतनी भी समझ नहीं आई?”
“ऐसा ही है |” रक्खे को स्वयं लगा कि उसकी आवाज़ में कुछ अस्वाभाविक-सी गूँज है |
(4) देशकाल और वातावरण
देशकाल एवं वातावरण से अभिप्राय कहानी के समय, स्थान, परिवेश, परंपराओं आदि से होता है | देशकाल एवं वातावरण कहानी में स्वाभाविकता और मौलिकता का पुट लाता है |
वैसे तो प्रत्येक कहानी में देशकाल व वातावरण की महती भूमिका होती है लेकिन क्योंकि ‘मलबे का मालिक’ कहानी भारत-पाक विभाजन के समय की कहानी है, अत: देशकाल व वातावरण और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है |
इस आधार पर कहानी बड़ी ही सजीव बन गई है | लेखक ने अमृतसर की चहल-पहल, गनी के जले हुए मकान व उसके मोहल्ले का बड़ा ही सजीव और स्वाभाविक चित्रण किया है |
कहानी में वातावरण सृष्टि का एक उदाहरण देखिए – “जिस रास्ते से भी पाकिस्तानियों की टोली गुजरती, शहर के लोग उत्सुकतापूर्वक उसकी ओर देखते रहते | कुछ लोग अब भी मुसलमानों को आते देख कर शंकित-से रास्ते से हट जाते थे, जबकि दूसरे आगे बढ़कर बगलगीर होने लगते थे |”
(5) भाषा एवं भाषा-शैली
‘मलबे का मालिक’ कहानी की भाषा सरल, सहज, सुबोध तथा प्रवाहमयी है | तत्सम, तद्भव, देशज विदेशज आदि सभी प्रकार के शब्दों का सुंदर समन्वय है | क्योंकि कहानी का मुख्य पात्र गनी मियाँ है, अत: भाषा में उर्दू के शब्दों की बहुलता है | वाक्य-विन्यास अत्यंत प्रभावशाली है | वाक्य छोटे किंतु बोधगम्य व व्याकरण सम्मत हैं | मुहावरे व लोकोक्तियां का प्रयोग देशकाल, वातावरण एवं कथानक के अनुकूल है |
जहाँ तक शैली का प्रश्न है, ‘मलबे का मालिक’ कहानी वर्णनात्मक एवं मनोविश्लेषणात्मक शैली में लिखी गई है | कुछ स्थानों पर संवादात्मक शैली का प्रयोग भी हुआ है |
(6) उद्देश्य
प्रत्येक साहित्यिक रचना का कोई न कोई उद्देश्य अवश्य होता है | इस दृष्टिकोण से ‘मलबे का मालिक’ कहानी भी कोई अपवाद नहीं है | ‘मलबे का मालिक’ कहानी का उद्देश्य ( ‘Malbe Ma Malik’ Kahani Ka Uddeshy ) भारत-पाक विभाजन के समय हुई सांप्रदायिक हिंसा का मार्मिक चित्रण करना है | लेखक ने आलोच्य कहानी के माध्यम से स्पष्ट किया है कि किस प्रकार 1947 में भारत-पाक विभाजन के समय घृणा और हिंसा की ऐसी आग भड़की जिसने मानव-मानव के संबंधों को जलाकर राख कर दिया | भारत-पाक विभाजन के समय मानवीय संबंधों में जो दरार आई, उसकी भरपाई संभवत: सदियों तक नहीं हो पाएगी |
यह भी देखें
‘ईदगाह’ ( मुंशी प्रेमचंद ) कहानी की समीक्षा [ ‘Idgah’ ( Munshi Premchand ) Kahani Ki Samiksha ]
‘पुरस्कार’ कहानी की तात्विक समीक्षा
‘मलबे का मालिक’ कहानी की तात्विक समीक्षा : ( ‘Malbe Ka Malik’ Kahani Ki Tatvik Samiksha )
‘ठेस’ कहानी की तात्विक समीक्षा
गैंग्रीन कहानी की तात्विक समीक्षा ( Gangrene Kahani Ki Tatvik Samiksha )
‘फैसला’ कहानी की तात्विक समीक्षा